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Jaane Kahaa ??? The Revolution

 अपडेट:3

 

किशोरीलाल की शादी जूनागढ़ की ही लड़की राजेश्वरीदेवी के साथ तय हुई। विक्रम भी शादी मे शरिक हुवा था। बड़ी सादगी से ये शादी सम्पन्न हुई। शादी के दो दिन बाद नारायणप्रसाद ने तीर्थयात्रा पे जाने का अपना फ़ैसला बताया। लेकिन सवाल ये उठा की अगर किशोरीलाल साथ मे जाता है तो ब्राहमिन कार्य करने के लिए एक को वहा होना ज़रूरी होता है। वैसे भी फॅमिली का गुजारा उन्ही पैसो से हुवा करता था। एक महीने की खोट मतलब एक साल की खोट। अंत मे तय हुवा की अगर किशोरीलाल नहीं जा पाए तो त्यौहार का महीना सावन के महीने मे छुट्टी लेकर विक्रम सब को तीर्थयात्रा पे ले जाएगा। साथ मे विक्रम ने ये भी प्लान बनाया की रास्ते मे वो सुनंदा को अपने मन की बात करेगा इसीलिए उसने अंकल नारायणप्रसाद को सुनंदा को साथ मे लेने के लिए राज़ी कर लिया। सावन के महीने मे विक्रम जूनागढ़ आया और विक्रम, नारायणप्रसाद, श्रीलेखा (नारायणप्रसाद की बीवी), सुनंदा ने तीर्थयात्रा सौराष्ट्र के सोमनाथ ज्योतिर्लिंग से प्रारंभ की।

 

ये बात किशोरीलाल के शादी के 6 महीने के बाद की बात थी। ऑगस्ट 1977 का महीना था। तीर्थयात्रा शुरू होने से पहले शायद नारायणप्रसाद और श्रीलेखा को उसका प्रसाद जैसे मिला था ये समाचार सुनके की वे अब दादा, दादी बनानेवाले है। बहू राजेश्वरीदेवी को चौथा महीना चल रहा था, शायद इसीलिए भी किशोरीलाल साथ मे नही जा पाया। विक्रम साथ था, अपने दोस्त पर पूरा भरोसा था क्योकि किशोरीलाल जानता था की विक्रम के मन मे नारायणप्रसाद के लिए कितना आदर था। एक बात ऐसी नही की नारायणप्रसाद ने बोली और विक्रम ने ना मानी हो। सिर्फ़ सुर, शराब और सुंदरी के बारे मे नारायणप्रसाद ने ज्यादा ज़ोर नही डाला इसीलिए विक्रम बेफ़िक्र होकर आगे बढ़ता ही चला गया था। और दोस्ती के नाते किशोरीलाल भी कुछ हद तक चुप रहता था। वैसे भी उनका मिलना साल मे दो तीन बार ही होता था। क्योकि किशोरीलाल अपने काम और साइन्स मे ज़्यादा डूबा रहता था और विक्रम अपने काम मेलेकिन कुछ ही दिनों मे एक समाचार ने सब को सर से पाव तक हिला के रख दिया।

 

एकदिन टेलिग्रॅम से समाचार आया की कन्याकुमारी मे नारायणप्रसाद और श्रीलेखा और बहन सुनंदा का ऍक्सीडेंट हो गया और उनको बचाते हुवे दोस्त विक्रम बुरी तरह ज़ख़्मी होकर हॉस्पिटल मे अड्मिट है। दो दिन के प्रवास के बाद किशोरीलाल कन्याकुमारी की हॉस्पिटल मे पहुचा, विक्रम की पूरी बॉडी ज़ख़्मी थी, किशोरीलाल को देखते ही विक्रम बहुत रो पड़ा। 10 मीनट के बाद स्वस्थ होकर पूरी कहानी बताई। विक्रम की बातो से पता चला की सुबह के 5.00 बजे कन्याकुमारी के समुंदर किनारे सूर्योदय देखने के लिए वे लोग सबसे पहले पहुचे थे। किसी ने बताया की अच्छी तरह से सूर्योदय देखना हो तो आसपास बिखरी पड़ी चट्टान के उपर से देखो तो अच्छा होगा। इसीलिए वे लोग एक उची चट्टान पर पहुचे। कन्याकुमारी अगर आप लोग कोई गया हो तो आप को पता होगा की वहा का समुंदर तूफ़ानी है। अगर आप समुंदर किनारे से स्वामी विवेकानंद रोक देखने के लिए बोट मे जाओगे तो बोट ऐसे चलती है मानो कोई आप को एक मकान के ग्राउंड फ्लोर से अचानक दूसरी मंज़िल पर फेक रहा हो और फिर दुसरी मंज़िल से ग्राउंड फ्लोर पे फेक रहा हो। मतलब वहासमुंदर की लेहरे बहुत तूफ़ानी है। चट्टान पर खड़े हुवे चारो को ऐसी लहरे बार बार छू रही थी। सूर्योदय से पहले का समय और सावन का महीना, धीमी धीमी बारिश की वजह से चट्टान गीली थी। अचानक नारायणप्रसाद का पैर फिसला और उसने संभलने लिए हाथ अचानक श्रीलेखा की पकड़ मे आया, दोनो फिसले और करीब 30 फीट की हाइट से पटके, चिल्लाकर सुनंदा आगे जुकी की उसका भी पैर फिसला उसका कंधा जोरो से विक्रम को टकराया। दो सेकेंड मे हुई इस घटना को कुछ समजे उसके पहले सुनंदा का कंधा ज़ोर से टकराने की वजह से विक्रम का संतुलन गीरा और वो दूसरी साइड पे गिरने वाला था। लेकिन उसी दो सेकेंड मे उसने अपने माइंड को संभाला और एक हाथ से सुनंदा को पकड़ना चाहा, सुनंदा अब जो 30 फीट की उचई से गिरने वाली थी वो और फिसले और सुनंदा मूह के बल 30 फीट नीचे गिरी उसके उपर विक्रम गिरा। जिसकी वजह से सुनंदा की तत्काल मृत्यु हो गयी और चेहरा भी पहचान मे ना आए ऐसा हो गया और विक्रम बुरी तरह से ज़ख़्मी हो गया। क्यूकी किशोरीलाल को पहुचने मे देर होने वाली थी इसीलिए ज़ख़्मी हालत मे भी विक्रम ने तीनो का अग्निसंस्कार कर दिया था और उसके बाद उसे भी अस्पताल मे भर्ती कर दिया गया था।

 

किशोरीलाल पूरा सदमे मे था। उसको ये बात का रंज तो ज़रूर था की वो अपने माबाप और बहन का अंतिम दर्शन भी नही कर पाया लेकिन उस से भी ज़्यादा ये सदमा पहुचा की एक्लौते बेटा होने के बावजूद वो अपने माबाप का अंतिम संस्कार भी नही कर पाया। दूसरे दिन दोनो जुनागढ वापस आए और विक्रम अपने अंकल आंटी और प्यारी सुनंदा की बारहवी तक रुका, फिर चला गया।

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इस घटना के ठीक 4 महीने बाद 25th डिसेंबर 1977, नाताल के दिन राजेश्वरीदेवी ने एक पुत्र को जन्म दिया। ये बालक हसता हुवा पैदा हुवा था, ठीक सुबह 6.05 मीनट पर जब गिरनार के पर्वत पर सुबह की गुरु दत्तात्रेय की आरती शुरू हुई, घंटारव के साथ बच्चे का जन्म हुवा। छट्टी के दिन बड़े हसरत से बच्चे का नाम जय रखा गया। जब जय दो महीने का हुवा तब दोनो माता पिता ने मन्नत रखी थी की वो गिरनार पर्वत पे जाएँगे और मन्नत पूरी करेंगे। क्योकि राजेश्वरीदेवी बचपन से धार्मिक स्वाभाव की  ही और उसको ये संस्कार मिले थे की

गुरु और गोविंद दोनो खड़े किसको लागू पाय,

बलिहारी गुरुदेव की जिन गोविंद दीयो दिखाय।

 यानी बचपन से गुरु की ख़ौज थी। गुरु दत्तात्रेय का मंदिर जो गिरनार पर्वत के शिखर पर स्थित है वो तो गुरुओ के गुरु है, तो उन दोनो की मन्नत थी की बच्चे के जन्म के बाद गिरनार ज़रूर जाएँगे। मार्च के पहले वीक मे दोनो गिरनार चढ़ने के लिए सुबह 4।30 बजे निकले।

 

अगर कोई गिरनार के उपर गया हो तो पता होगा गिरनार पर्वत पर कुल मिलकर 9,999 स्टेप्स है। अगर आप सुबह 4 से 5 बजे शुरू करोगे  तो 12 से 1 बजे तक पहुच पाओगे। इसीलिए किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी ने सुबज 5 बजे चढ़ना शुरू किया।

 

सबसे पहले वो अंबाजी पहुचे (गिरनार पर्वत पर का एक पड़ाव) वहा दर्शन किया। थोड़ी देर आराम के बाद और चढ़ाई शुरू की। ज़्यादा ठंड भी नही थी और ज़्यादा गर्मी भी नही थी। फिर भी थकान से थोड़े पसीने से तरबतर थे। वैसे भी केवल 2 महीने के बच्चे को साथ मे लेकर गिरनार जाना तो संभव ही नही होता, क्योकि उपर तो ऑक्सिजन भी थोड़ी कम हो जाती है तो सास लेने मे भी तकलीफ़ होती है। फिर भी इन दोनो ने ईश्वर पर भरोसा रखा था की तुने संतान दी है तो तु ही इसका रखवाला बनेगा और दोनो आगे बढ़ते बढ़ते आधी उचाई तक दातार (गिरनार पर्वत का उचाइओ पर का एक और पड़ाव) तक पहुचे। थोड़ी देर विश्राम लेने का दोनो ने सोचा। दोनो वहा स्टेप्स पर बैठ गये।

 

इतने मे एक आवाज़ आई,” बेटा इधर आ जाओ दातार के आसपास तो घना जंगल हुवा करता है। दोनो ने आसपास नज़र दौड़ाई, लेकिन कुछ नही दिखाई दिया। फिर से आवाज़ आई,” तेरी दाई और देख और सिधा अंदर चला आ।किशोरीलाल ने दाई और देखा तो 50 कदम दूर एक छोटी सी गुफा थी, थोड़ा सा डर भी लगा, लेकिन वाइब्रेशन इतने गहरे थे की दोनो के पैर मानो हिप्नोटाइज़ होकर उस गुफा की और चलने लगे। पास आकर देखा तो दोनो को ज़ुक कर अंदर जाना पड़ा इतना छोटा सा द्वार था। दोनो ने अंदर प्रवेश किया तो अंदर 60 से 70 कदम दूर एक छोटे से पत्थर पर कोई संत ध्यानमग्न अवस्था मे बैठे थे। चेहरे पर बड़ा तेज था, गौर मुख, छोटी सी दाढ़ी और बिखरे काले बॉल, उम्र होगी कोई 30 या 32 साल की। लेकिन उसको देखते ही दोनो को डर नही लगा और पास जाने के बाद दोनो ने प्रणाम किया और उनके चरनो मे बैठ गये । संत ने धीरे से आँखे खोली और कुछ पल तक मुस्कुराकर देखते रहे और धीरे से बोले,” हम साधु को अच्छी आत्मा के वाइब्रेशन की बड़ी अच्छी पहचान होती है। तुम दोनो के साथ तुम्हारे बेटे के आत्मा की सुवास ने तुम दोनो को यहा पर बुलाने पर मजबुर कर गयी।

 

किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी को तो बड़ा आश्चर्या हुवा की उसने ना तो कभी इस साधु को देखा था और 70 फीट आगे और अपनी बाई और गुफा से 50 कदम दूर उनदोनो को यहा बैठे बैठे देखने वेल ये महात्मा कौन है। खास करके जिज्ञाशा ये हुई की उनके बेटे जय के बारे मे उस संत ने अच्छी आत्मा बोला था। इसका मतलब वो महात्मा जो भी ही है वे सब के बारे मे कुछ ना कुछ ज़रूर जानते है। उन दोनो को बड़ी जिज्ञाशा हुई की ये संत आख़िर कौन है ?? कहा से आए है ?? क्यो उसको ही मिले ?? और इनका मकसद क्या है ??

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29 Comments

Sandhya Prakash

02-Jan-2022 11:17 AM

Behad intresting chal rahi h kahni

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PHOENIX

02-Jan-2022 11:44 AM

Thanks.

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Story to kafi achchi h..

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PHOENIX

02-Jan-2022 11:44 AM

Yes it's interesting.

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Barsha🖤👑

10-Dec-2021 06:34 PM

रोमांचक.. रहस्यमय.. आगे क्या...

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PHOENIX

10-Dec-2021 06:58 PM

पढते रहिये? बहुत कुछ आनेवाला है|

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